साखी भावार्थ/व्याख्या │ Sakhi Sahitya Sagar ICSENews.in

साखी भावार्थ/व्याख्या │ Sakhi Sahitya Sagar
Sakhi Sahitya Sagar

Sakhi सारांश Sahitya Sagar (साखी सारांश)

प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। यहाँ पर पाँच साखियाँ दी गई है। प्रत्येक साखी में कबीरदास ने नीतिपरक शिक्षा देने का प्रयास किया है।

प्रथम साखी में कवि ने गुरु के महत्त्व को प्रतिपादित किया है कि यदि गुरु और गोविंद दोनों उनके सामने खड़े हो तो वे पहले गुरु के चरण स्पर्श करेंगे कारण गुरु ने ही उन्हें ईश्वर का ज्ञान दिया है।

दूसरी साखी में कवि ने कहा है कि अहंकार को मिटाकर की ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।

तीसरी साखी में कवि ने मुसलमानों पर व्यंग करते हुए कहा है कि ईश्वर की उपासना शांत रहकर भी की जा सकती है।

चौथी साखी में कवि ने हिन्दुओं की मूर्ति पूजा का खंडन किया है कि पत्थर पूजने से भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती है।

पाँचवी साखी में कवि ने ईश्वर को अनंत बताया है। कवि के अनुसार ईश्वर की महिमा का बखान नहीं किया जा सकता।

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प्रथम साखी | First Sakhi of Sahitya Sagar

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥

हिंदी साहित्य के निर्गुणवादी कवि कबीर द्वारा रचित इस दोहे में गुरु एवं भगवान दोनों की तुलना की जा रही है। इस पंक्ति में कबीरदास गुरु के स्थान को ईश्वर से अधिक बड़ा बता रहे हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि मेरे सामने मेरे गुरु और भगवान दोनों खड़े हैं और मैं इस उलझन में पड़ा हूं की दोनों में से सबसे पहले चरण स्पर्श किसका करूं? कबीर स्वयं हीं इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि मुझे सबसे पहले गुरु के चरणों में ही अपना शीश झुकाना चाहिए। क्योंकि गुरु ने ही तो मुझे ईश्वर के बारे में बताया है, गुरू ने ही मुझे ईश्वर के अस्तित्व के बारे में बताया, गुरू ने ही मुझे ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताया है। अतः हम गुरु की कृपा से ही हम भगवान तक पहुंचते हैं इसीलिए गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा है।


दूसरी साखी | Senond Sakhi of Sahitya Sagar

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं॥

उपर्युक्त दोहे मेंं संत कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं था तब हरी नहीं अर्थात जब तक मनुष्य में अहंकार की भावना होती है तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती । ईश्वर का वास वहाँ होता है जहाँ मैं (मैं अहंकार को बताया गया है। ) नहीं होता। अहंकार और भगवान दोनों एक साथ नहीं रह सकते। कबीर कहते हैं कि प्रेम की गली बहुत साँकरी है अर्थात बहुत पतली है उसमें अहंकार और भगवान दोनों एक साथ नहीं रह सकते। भाव यह है कि वो व्यक्ति जो अहंकारी है वो भगवान को कभी नहीं पा सकता। अतः भगवान को पाने के लिए अहंकार का त्याग करना होगा।

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तीसरी साखी | Third Sakhi of Sahitya Sagar

कांकड़ पाथर जोरी के मस्जिद लऐ चुनाय।
ता पर चढि मुल्ला बाँग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥

प्रस्तुत दोहे में कबीरदास ने अपनी साखियों में प्रचलित रुड़ियों एवं आडंबरों पर गहरी कटाक्ष की है। इस साखी में कवि मुसलम धर्म के ख़ुदा को याद करने या पुकारने के ढंग पर करारा व्यंग्य कर रहे हैं। वे कहते हैं कि कंकड़-पत्थर जोड़कर मनुष्य मस्जिद का निर्माण कर लिया है जिस पर चढ़कर मुल्ला अर्थात मौलवी जोर जोर से चिल्लाकर नमाज़ अदा करता है। इसी रूढ़िवादिता पर तंज कसते हुए वे मानव समाज से प्रश्न करते हैं कि क्या खुदा बहरा है? जिसके स्मरण करने के लिए हमें जोर-जोर से चिल्लाना की आवश्यक पड़ रही है ? कबीरदास जी कहते है की क्या शांति से एवं मन ही मन में की गयी प्रार्थना ईश्वर तक नहीं पहुँचती है? वे इस दोहे में ढोंग आडंबर तथा पाखंड का विरोध करते हुए नज़र आते हैं।


चौथी साखी | Fourth Sakhi of Sahitya Sagar

पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥

उपर्युक्त साखी में संत कबीरदास हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर करारा व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि यदि पत्थर पूजने से भगवान मिल जाएँ, तो मैं किसी छोटे-मोटे पत्थर की नहीं बल्कि पूरे पहाड़ की पूजा करूँ। कबीर कहते हैं कि पत्थर की बनी उस मूर्ति से तो यह चक्की ही अच्छी है, क्योंकि इसके द्वारा पीसे गए अनाज से लोगों का पेट भरता है।

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पाँचवी साखी | Fifth Sakhi of Sahitya Sagar

सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय॥

कबीरदास कहते हैं कि ‘भगवान के गुण अनंत हैं, उनका वर्णन नहीं किया जा सकता यही भाव व्यक्त करते हुए कबीरदास कहते हैं कि भगवान के अनंत गुणों का बखान किसी भी मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता, कबीरदास जी आगे कहते है इसके लिए यदि सातों समुद्रों को स्याही बनाई जाए, सारे जंगलों के पेड़ों की कलमें बनाई जाएँ तथा समस्त पृथ्वी को कागज के रूप में प्रयोग कर लिया जाए तब भी ईश्वर के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये सब ईश्वर के अनंत गुणों का वर्णन करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।


MCQs for Sakhi Sahitya Sagar

आपने अभी अभी IcseNews.in के द्वारा दिए गए साखी question answer भावार्थ पढ़ा हे अब हमने एक टेस्ट रखा हे MCQ के रूप में जिससे आप अपने आपका परीक्षण कर सकेंगे जो आपको याद रखने में काफी फायदेमंद रहेगा।

गुरु और गोविंद दोनों उनके सामने खड़े हो तो कबीरदास पहले किसके के चरण स्पर्श करेंगे?





ANSWER= गुरु

दूसरी साखी में कवि ने किसे हटाने की बात की है?





ANSWER= अपने अहंकार को


FAQs

FAQ 1: ईश्वर की उपासना किस तरीके से की जा सकती है।

ईश्वर की उपासना शांत रहकर भी की जा सकती है।

FAQ 2: कवी किसे ज्यादा महत्व देते हे और क्यों?

गुरु और गोविंद दोनों उनके सामने खड़े हो तो वे पहले गुरु के चरण स्पर्श करेंगे कारण गुरु ने ही उन्हें ईश्वर का ज्ञान दिया है।

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