[Solved] Mahayagya ka Puraskar Question Answer | महायज्ञ का पुरस्कार full Story ICSE Sahitya Sagar

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Mahayagya ka Puraskar Workbook Answers

Table of Contents

महायज्ञ का पुरस्कार full story | Mahayagya ka Puraskar Story

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी यशपाल द्वारा लिखा गया है एक धनी सेठ था|

यशपाल धनी सेठ स्वभाव से अत्यंत विनम्र, उदार और धर्मपरायण व्यक्ति था| कोई साधू संत उसके द्वार से खाली वापस नहीं लौटता था| वह अत्यंत दानी था. जो भी उसके सामने हाथ फैलता था, उसे दान अवश्य मिलता था. उसकी पत्नी भी अत्यंत दयालु व परोपकारी थी, परन्तु एक समय ऐसा आया कि सेठ को गरीबी का मुख देखना पड़ा, नौबत ऐसी आ गयी की भूखे मरने की हालत हो गयी. उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी की यज्ञ के पुण्य का क्रय – विक्रय किया जाता था.

सेठ – सेठानी ने निर्णय लिया किया की यज्ञ के फल को बेचकर कुछ धन प्राप्त किया जाय ताकि कुछ गरीबी दूर हो. सेठ के यहाँ से दस – बारह कोस की दूरी पर कुन्दनपुर नाम का क़स्बा था , वहाँ एक धन्ना सेठ रहते थे , ऐसी मान्यता थी कि उनकी पत्नी को दैवी शक्ति प्राप्त है और वह भूत – भविष्य की बात भी जान लेती थी, मुसीबत से घिरे सेठ – सेठानी ने कुन्दनपुर जाकर उनके हाथ यज्ञ का पुण्य बेचने का निर्णय लिया, सेठानी पड़ोस के घर से आटा माँग चार रोटियां बनाकर सेठ को दे दी, सेठ तड़के उठे और कुन्दनपुर की ओर चल पड़े, गर्मी के दिन थे, रास्ते में वृक्षों का झुरमुट तथा कुआँ देखकर उन्होंने सोचा की विश्राम कर थोडा भोजन भी कर लें, सेठ ने जैसे ही अपनी रोटियाँ निकाली तो उसके सामने एक मरियल सा कुत्ता नज़र आया, सेठ को दया आई और उन्होंने एक – एक करके अपनी सारी रोटियाँ कुत्ते को खिला दी. स्वयं पानी पीकर कुन्दनपुर पहुँचे तो धन्ना सेठ की पत्नी ने कहा कि अगर आप आज का किया हुआ महायज्ञ को बेचने को तैयार हैं तो हम उसे खरीद लेंगे अन्यथा नहीं. सेठ जी अपने महायज्ञ को बेचने को तैयार नहीं हुए,वह खाली हाथ लौट आये, अगले दिन ही सेठ जी अपने घर की दहलीज़ के नीचे गडा हुआ खज़ाना मिला, उसने जो मरियल कुत्ते को अपनी रोटी खिलाई थी,यह खज़ाना उसी महायज्ञ का पुरस्कार था, ईश्वर भी उन्ही की सहायता करता जो निःस्वार्थ भाव से गरीबो,की सहायता करता है, हमारे अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते है. हमें हमेशा अच्छे कर्म करते रहने चाहिए तभी जीवन सुफल होगा| निस्वार्थ भाव से किया गया छोटे से छोटा परोपकार का कार्य भी एक महायज्ञ के समान होता है|

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी का उद्देश्य लिखिए

लेखक यशपाल द्वारा रचित कहानी महायज्ञ का पुरस्कार शीर्षक का उद्देश्य प्रदर्शित करता है कि सच्ची कर्तव्य भावना एवं नि:स्वार्थ भाव से किया गया कर्म किसी महायज्ञ से कम नहीं होता | इस प्रकार के कर्म का फल अवश्य प्राप्त होता है | जीवो पर दया करना मनुष्य का परम कर्तव्य है | नर सेवा ही नारायण सेवा होती है | स्वयं कष्ट सहन करके दूसरों के कष्टों का निवारण करना मानव धर्म है | सेठ जी चाहते तो एक या दो रोटी ही कुत्ते को खिला स्वयं दो रोटी खा लेते परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया उन्होंने अपनी सारी रोटियाँ कुत्ते को खिला दी यह सबसे बड़ा यज्ञ है | दिखावे में किया गया कार्य या यज्ञ महत्वपूर्ण हीन होता है | ईश्वर दीन – दुखियों की सेवा पर प्रसन्न होते हैं न कि झूठे आडंबर से |

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शीर्षक की सार्थकता

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी का शीर्षक अत्यंत सार्थक एवं उचित है. कहानीकार यशपाल जी उपयुक्त कहानी में दिखाया है कि निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही सच्चा कर्म महायज्ञ होता है, क्योंकि मनुष्य के पास धन संपदा होने की स्थिति में यदि वह दान – पुण्य करता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है लेकिन स्वयं अभावग्रस्त जीवन जीते हुए भी यदि कोई दूसरे की सहायता करता है तो उसका यह कार्य वास्तव में बहुत ही सराहनीय है|

इस कहानी के मुख्य पात्र सेठ जी है| जो स्वयं भूखे होते हुए भी एक भूखे कुत्ते को सारी रोटी खिलाकर मुझे मरने से बचाया था, उनका यह परोपकार का कार्य एक महायज्ञ के समान ही था| अतः नि:स्वार्थ भाव से कर्म करना चाहिए और लोगो की भलाई कर्तव्य मानकर करना चाहिए, यही महायज्ञ है|

अतः कहा जा सकता है कि कहानी का शीर्षक उचित एवं सार्थक है जो की पाठकों के ह्रदय पर एक गहरी छाप छोडती है| महायज्ञ का पुरस्कार कहानी हमें निःस्वार्थ भाव से कार्य करने की प्रेरणा देती है। वह हमें प्राणिमात्र को उदारता से देखने का सन्देश देती है। उदाहरण के लिए इस कहानी में सेठ निष्काम भाव से एक भूखे कुत्ते को अपना सारा भोजन खिला देता है। ईश्वर उसको इस निःस्वार्थ कार्य का फल देते हैं। इसलिए इस पाठ का शीर्षक उचित है।

Mahayagya ka puraskar summary में भी इ लिख सकते हो आप लोग।

अकस्मात दिल से और सेठ को गरीबी का मुंह देखना पड़ा। संगी साथियों ने भी मुंह फेर लिया।

Question:-

सेठ के चरित्र की क्या विशेषताएं थी?

Answer:-

किसी नगर में एक सेठ रहते थे। आदित्य तंत्र विनम्र उधार धर्मपरायण। कोई उनके द्वार से निराश ना लौटाता था, भरपेट भोजन पाता। उनके दिन फिरने और गरीब होने पर भी उन्होंने अपने कर्तव्य भावना को विस्मृत नहीं किया। कहानी के अंत में भी उन्होंने ईश्वर से यही प्रार्थना की – ‘हे प्रभु! मेरी कर्तव्य बुद्धि को जगाए रखना मैं स्वयं कष्ट साफ कर दूसरों को कष्ट काम कर सकूं ऐसी बुद्धि और शक्ति मुझे देना’।

Question:-

‘संगी-साथीयो ने भी मुंह फेर लिया’ पंक्ति द्वारा समाज किस दुर्बलता की ओर संकेत किया गया है?

Answer:-

इस पंक्ति द्वारा समाज का करीब व्यक्ति के प्रति विचार की दुर्बलता की ओर संकेत किया गया है समाज की कमजोरी है कि गरीब व्यक्ति को कोई सम्मान नहीं देता और ना ही कोई उसकी मदद के लिए आगे आता है गरीबी के चलते दोस्त, संगी-साथीयो साथ छोड़ देते है

Question:-

उन दिनों क्या प्रथा प्रचलित थी ? सेठानी ने सेठ को क्या सलाह दी?

Answer:-

तुम दिनों यज्ञों के फल का क्रय-विक्रय की प्रथा प्रचलित थी। छोटा बड़ा जैसा यज्ञ होता उन्हीं के अनुसार उसका मूल्य मिल जाता था। जब सेठ के दिन फिर गए और उन्हें गरीबी का मुंह देखना पड़ा तो एक दिन सेठानी ने सेठ को सलाह दि की क्यों न वे अपना एक यज्ञ बेच डाले।

Question:-

सेठानी की बात मानकर सेठ जी कहां गए? धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में क्या अफ़वाह था?

Answer:-

सेठानी की यज्ञ बेचने की प्रार्थना तथा अपनी तंगी का विचार कर अपना एक यज्ञ बेचने के लिए वहा से दस -बारह कोस की दूरी पर कुंदनपुर नाम के एक नगर में गए, जहां एक बहुत बड़े सेठ रहते थे। जिन्हे लोग धन्ना सेठ कहते थे।

धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में यह अफ़वाह थी की उसे कोई देवी शक्ति प्राप्त हैं जिसके कारणय यह तीनों लोको की बात जान लेती हैं


Question:-

‘सेठ जी, या खरीदने के लिए तो हम तैयार हैं पर आपको अपना महायज्ञ बेचना पड़ेगा।’

Answer:-

वक्ता धन्ना सेठ की पत्नी है। सेठ के यज्ञ बेचने की बात सुन धन्ना सेठ की पत्नी ने सेठ से बोली, यज्ञ खरीदने के लिए तो हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा वही जो आज आपने किया।” यह सुन सेठ बड़े आश्चर्य में पड़े क्युकी गरीबी के करना महायज्ञ तो दूर कोई भी यज्ञ उन्होंने वर्षो से नहीं किया। यही बात सुन कर वे समझे कि उनका मज़ाक उड़ाया जा रहा है।

Question:-

सेठानी अनुसार सेठ जी ने कौन-सा महायज्ञ किया था?

Answer:-

सेठानी के अनुसार रास्ते में स्वयं न खाकर चारों रोटियाँ भूखे कुत्ते को खिला दीं, यह महायज्ञ नहीं तो और क्या है। यज्ञ कमाने की इच्छा से धन-दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ सच्चा यज्ञ नहीं है, निःस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही सच्चा यज्ञ महायज्ञ है।

Question:-

सेठानी के बाद सुनकर यग बेचने आए सेठ जी की क्या प्रतिक्रिया हुई?

Answer:-

सेठ मनो आसमान से गिरे। सेठ जी सोचने लगे कि भूखे को अन्न देना सभी का कर्तव्य है। उसमें यज्ञ जैसी क्या बात है। सेठ जी ने कोई उत्तर दिए बिना चुपचाप अपनी पोटली उठाई और हवेली से बाहर चले गए। उन्हें मानवोचित कर्तव्य का मूल्य लेना उचित न लगा।

Question:-

यज्ञ बेचने आए सेठ के चरित्र की विशेषताएं बताइए।

Answer:-

यज्ञ बेचने आए सेठ जी अत्यंत विनम्र और उदार भाव के थे। अगर कोई साधु संत उनके द्वार पर आता तो निराश ना लौटता, भरपेट भोजन पाता। भंडार के द्वार सबके लिए खुले थे । उन्होंने बहुत से यज्ञ किए और दान में न जाने कितना धन दिन दुखियों में बाँट दिया था। यहाँ तक की गरीब हो जाने के बावजूद भी उन्होंने अपनी उदारता को नहीं छोड़ा और धन प्राप्ति के बाद भी ईश्वर से सद्बुद्धि ही माँगी।


सेठ ने आदयोपांत सारी कथा सुनाई। कथा सुनकर सेठानी की समस्त वेदना जाने कहां विलीन हो गई।

Question:-

सेठ जी की खाली हाथ वापस आते देखकर सेठानी की क्या प्रतिक्रिया हुई और क्यों?

Answer:-

सेठानी बड़ी-बड़ी आशाएं लगाए बैठी थी। सेट को खाली हाथ वापस आए देख आशंका से कांप उठीं। सेठानी के पूछने पर से सेठ ने प्रारंभ से अंत तक सारी बातें बताएं यह सुनकर सेठानी की हृदय उल्लासित हो उठा।विपत्ति में भी सेठ ने धर्म नहीं छोड़ा धन्य है मेरे पति सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली धीरज रखें भगवान सब भला करेंगे।

Question:-

सेठ ने आदयोपांत जो कथा सुनाई, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

Answer:-

सेठ ने अपनी पत्नी को बताया कि जब वे सेठ के यहाँ पहुँचे तो उन्होंने अपने आने का कारण बताया। तभी सेठ की पत्नी ने कहा कि हम यज्ञ खरीदने के लिए तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा। मेरे यह बताने पर कि मैंने तो बरसों से कोई यज्ञ नहीं किया है, वह बोली कि आपने आज ही महायज्ञ किया है। आपने रास्ते में स्वयं भूखे रहकर एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियाँ खिला दीं, यह महायज्ञ नहीं तो क्या है? क्या आप इसे बेचने को तैयार हैं? परंतु मैं किसी भूखे को अन्न देना केवल कर्तव्य मानता हूँ, यज्ञ नहीं। इसलिए मैंने चुपचाप अपनी पोटली उठाई और वापस आ गया।

Question:-

सेठ जी की बात सुनकर सेठानी की समस्त वेदना क्यों विलोम हो गई?

Answer:-

सेठ जी की बात तथा उनकी महानता देख सेठानी की समस्त वेदना विलीन हो गई थी। उनका हृदय यह उल्लसित हो गया था कि उनके पति ने विपत्ति में भी धर्म नहीं छोड़ा था। उनका मानना था कि सच्ची कर्तव्य भावना और निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म अवश्य फल देता है। उसने अपने पति को धैर्य बँधाया तथा ईश्वर पर भरोसा रखने को कहा।

Question:-

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी के द्वारा लेखक ने क्या संदेश दिया है?

Answer:-

कहानी का संदेश है कि सच्ची कर्तव्य भावना एवं निस्स्वार्थ भाव से किया गया कर्म किसी महायज्ञ से कम नहीं होता। इस प्रकार के कर्म का फल अवश्य प्राप्त होता है। जीवों पर दया करना मनुष्य का परम कर्तव्य है। नर सेवा ही नारायण सेवा होती है। स्वयं कष्ट सहन करके दूसरों के कष्टों का निवारण करना मानव-धर्म है। केवल दिखाने के लिए किया गया यज्ञ महत्त्वहीन होता है।


सेठ जी की क्या विशेषता थी?

सेठ जी अत्यंत विनम्र और दयालु थे | वे इतने धर्म परायण थे कि उनके द्वार से कभी कोई साधु संत निराश न लौटता था, भरपेट भोजन पाता | जो भी हाथ पसारता वही पाता | उन्होंने बहुत से यज्ञ किए थे और दान में न जाने कितना धन दीन – दुखियों में बाँट दिया था |

गरीबी के कारण सेठ जी को किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ा ?

गरीबी के कारण सेठ जी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा | सभी संगी – साथियों ने उनसे मुँह फेर लिया और नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि सेठ और सेठानी मरने लगे |

सेठानी ने सेठ को क्या सलाह और क्यों दी?

उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल का क्रय-विक्रय हुआ करता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता। जब बहुत तंगी हुई तो एक दिन सेठानी ने सेठ को सलाह दी कि क्यों न वे अपना एक यज्ञ बेच डाले। इस प्रकार बहुत अधिक गरीबी आ जाने के कारण सेठानी ने सेठ को अपना यज्ञ बेचने की सलाह दी।

धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में क्या अफ़वाह थी?

धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में यह अफ़वाह थी कि उसे कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है जिससे वह तीनों लोकों की बात जान सकती है।


सेठजी कहाँ जा रहे थे ? तथा क्यों ?

सेठजी कुंदनपुर जा रहे थे | सेठ जी अत्यंत विनम्र और उदार तथा धर्म परायण थे उनके द्वार से कोई याचक खाली हाथ नहीं लौटता था | अकस्मात् दिन फिर जाने पर गरीबी के कारण उनकी भूखों मरने की नौबत आ गई | इसलिए यज्ञ बेचकर धन प्राप्त करने की इच्छा से वे कुंदनपुर के धन्नासेठ के पास जाना चाहते थे | उस समय ऐसी परंपरा थी कि लोग यज्ञ बेचकर उसके पूर्ण फल के अनुसार अनाज, धन आदि प्राप्त कर सकते थे |

उन्हें विश्राम करने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? उन्होंने कहाँ विश्राम किया ?

सेठ जी के घर से कुंदनपुर दस – बारह कोस दूर था | गर्मी के दिन होने के कारण वे तड़के सूरज निकलने से पहले ही रास्ता पार करना चाहते थे इसलिए जल्दी – जल्दी चल रहे थे परंतु आधा रास्ता पार करते – करते ही धूप ज्यादा तेज हो गई | उनका शरीर पसीने से भीग गया भूख सताने लगी इसलिए उन्हें विश्राम करने की आवश्यकता पड़ी | उन्होंने सामने वृक्षों का एक कुञ्ज और कुआँ देख वही विश्राम किया |

उनकी पोटली में क्या – क्या था ? क्या वे भोजन और विश्राम कर पाए ?

उनकी पोटली में चार मोटी – मोटी रोटियाँ , लोटा और डोर था |
वे भोजन नहीं कर पाए क्योंकि जैसे ही वे भोजन करने बैठे एक दुर्बल कुत्ते को भूख से छटपटाते हुए देखा | उसे देखकर दया आ गई और चारों रोटियाँ खिला दी और स्वयं एक लोटा जल पीकर व थोड़ा विश्राम कर अपने रास्ते चल पड़े |

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि नि:स्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिए | नर सेवा ही नारायण सेवा है | जीवों को कष्ट मुक्त कराने से ही ईश्वर प्रसन्न होते हैं , न कि हज़ारों रुपए खर्च करके किए गए यज्ञ से | इसलिए पूजा-पाठ , यज्ञ आदि का आडंबर नहीं करना चाहिए , बल्कि जीवों पर दया करनी चाहिए |

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महायज्ञ का पुरस्कार कहानी हमें क्या करने की प्रेरणा देती है?

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी हमें निःस्वार्थ भाव से कार्य करने की प्रेरणा देती है।

धनी सेठ का स्वभाव कैसा है?

यशपाल धनी सेठ स्वभाव से अत्यंत विनम्र, उदार और धर्मपरायण व्यक्ति था|

धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में क्या अफ़वाह थी?

धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में यह अफ़वाह थी कि उसे कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है जिससे वह तीनों लोकों की बात जान सकती है।

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